भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्था- इसरो ) को 15 अगस्त 1969 में मूर्त रूप दिया गया था. तब से अब तक ये सफलता के नए कीर्तिमान गढ़ता गया है. अब इसकी उपलब्धियों में एक और कामयाबी जुड़ने जा रही है और वह है साल 2025 तक भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के बढ़कर 1.05 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचाने की. देश के महान गणितज्ञ आर्यभट्ट के नाम से 1975 में छोड़े गए पहले उपग्रह ने भले ही अंतरिक्ष में जाकर 5 दिन बाद काम करना बंद कर दिया हो, लेकिन इसरो के हौसले नहीं टूटे.
इसका सबूत इसरो के 7 जून 1979 को देश के 442 किलो के दूसरे उपग्रह भास्कर को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने के तौर पर सामने आया. इसके बाद से इसरो ने मुड़कर नहीं देखा और आज वो चांद पर सोडियम की खोज तक का सफर तय कर चुका है. इसरो के आगे के इस सफर में कामयाबी के नए मुकाम उसका इंतजार कर रहे हैं और इसका असर अभी से अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में उपग्रह प्रक्षेपण सेक्शन में निजी भागीदारी में तेजी से होती बढ़ोतरी के तौर पर देखा जा सकता है.
भारत अंतरिक्ष अनुभवों का माहिर खिलाड़ी रहा है. इसकी बानगी टीपू सुल्तान के मैसूर की जंग में मिलती है. इस जंग में टीपू ने अंग्रेजों के खिलाफ रॉकेट का इस्तेमाल किया था. ये तकनीक पड़ोसी देश चीन से रेशम मार्ग के जरिए हासिल की गई थी. 1947 में अंग्रेजी हुकूमत की बेड़ियों को उखाड़ फेंकने के बाद भारत के वैज्ञानिक देश की रॉकेट तकनीक को सुरक्षा में इस्तेमाल करने और इसमें अनुसंधान और विकास के लिए मशहूर हो गए. आज आलम ये है कि भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था 2025 तक लगभग 13 बिलियन अमेरिकी डॉलर यानी 1.05 लाख करोड़ रुपये होने की उम्मीद जताई जा रही है. इसमें सबसे अहम रोल प्राइवेट सेक्टर निभा रहा है.
इसकी भागीदारी की वजह से उपग्रह प्रक्षेपण खंड यानी सैटेलाइट लॉन्च सर्विस सेगमेंट तेजी से फल-फूल रहा है. इंडियन स्पेस एसोसिएशन (आईएसपीए) और अर्न्स्ट एंड यंग की रिपोर्ट के मुताबिक छोटे उपग्रहों की बढ़ती मांग देश में उपग्रह निर्माण को बढ़ावा देने के साथ ही इस क्षेत्र में वैश्विक स्टार्ट-अप को लुभाने में मदद देगी. इससे देश में प्रौद्योगिकी कंपनियों यानी स्पेस टेक कंपनियों को पनपने में मदद मिलेगी और उनके लिए पैसे का इंतजाम हो पाएगा.
मौजूदा वक्त में अंतरिक्ष क्षेत्र में लगभग 102 स्टार्ट अप काम कर रहे हैं. ये अतंरिक्ष से संबंधित स्टार्टअप अत्याधुनिक क्षेत्रों जैसे मलबा प्रबंधन, नैनो-उपग्रह, सैटेलाइट लॉन्च कैरियर, जमीनी प्रणाली. अनुसंधान में बेहतरीन काम कर रहे हैं. बीते 3-4 साल की बात की जाए तो पहले केवल दो स्टार्टअप से ये सफर शुरू हुआ था.
अनुसंधान, विकास, शिक्षा और उद्योग के एक हो जाने और समान भागीदारी होने से इस अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में बूम आया है. इस वक्त प्राइवेट सेक्टर और स्टार्टअप्स के संग इसरो के अगुवाई में अंतरिक्ष क्रांति क्षितिज पर अपनी चमक बिखेर रही है. इसरो अंतरिक्ष की दुनिया में नित नए कीर्तिमान बना रहा है. वह अंतरिक्ष में सबसे बड़े रिमोट-सेंसिंग उपग्रहों के ग्रुप के संग एक खास जगह बना रहा है.
इंडियन स्पेस एसोसिएशन वर्षगांठ के मौके पर दिल्ली में इंडिया स्पेस सम्मेलन में केंद्रीय डॉ. जितेंद्र सिंह ने इस कामयाबी का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दिया है. उन्होंने कहा कि पीएम मोदी ने अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था को लेकर जून 2020 में एक क्रांतिकारी और लीक से हटकर फैसला लिया था. इसमें पीएम मोदी ने निजी सेक्टर के लिए अंतरिक्ष क्षेत्र के दरवाजे खोल डाले थे.
इसका नतीजा ये हुआ कि इससे देश के अंतरिक्ष इकोसिस्टम का चेहरे बदल गया वो विकास के मार्ग पर दौड़ने लगा. 'भारत में अंतरिक्ष पारिस्थितिकी तंत्र का विकास: समावेशी विकास पर ध्यान केंद्रित करना रिपोर्ट को देखा जाए तो भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था रैपिड मोड में है. साल 2020 में भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में 9.6 बिलियन अमरीकी डॉलर यानी 900 करोड़ रुपये आंकी गई थी.
इसके साल 2025 तक 12.8 बिलियन अमरीकी डॉलर यानी 10.5 खरब रुपये तक पहुंचने की उम्मीद है. डॉलर में देखा जाए तो सैटेलाइट सर्विसेज और उसके इस्तेमाल करने हिस्से के कारोबार में साल 2025 में सबसे अधिक उछाल आएगा. इसका कारोबार 3.78 खरब (4.6 बिलियन डॉलर) रहने की उम्मीद जताई जा रही है. उधर जमीनी इस्तेमाल वाले हिस्से का कारोबार 3.2 खरब रुपये (4 बिलियन डॉलर) तक जाने की उम्मीद जताई जा रही है.
उपग्रहों के निर्माण के कारोबार की बात की जाए तो ये 2.6 खरब रुपये (3.2 बिलियन डॉलर ) और प्रक्षेपण सेवा यानि इनके लॉन्च के कारोबार 8.2 अरब (1 बिलियन डॉलर) में उछाल आने की उम्मीद जताई जा रही है. रिपोर्ट में ये भी कहा गया है, "भारतीय अंतरिक्ष पारिस्थितिकी तंत्र में निजी खिलाड़ियों यानी प्राइवेट सेक्टर को शामिल करने के सरकार के सकारात्मक कदम की वजह से भारतीय अंतरिक्ष प्रक्षेपण को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है."
अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था की बात की जाए तो साल 2020 में लॉन्च सर्विसेज हिस्से का कारोबार 600 मिलियन अमेरिकी डॉलर आंका गया था. इसके साल 2025 तक 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने के लिए 13 फीसदी की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि की दर से बढ़ने का अनुमान लगाया गया है.
इसमें सबसे खास बात कम लागत से तैयार होने वाले उपग्रह प्रक्षेपण वाहनों (Satellite Launch Vehicles) के बड़े पैमाने पर उत्पादन का होना है. इससे दुनियाभर में भारत के इन उपग्रह प्रक्षेपण वाहनों के ग्राहकों की मांग बढ़ेगी. इसे ही भारतीय कंपनिया कैश कराना चाहती है. इसमें वो नई तकनीक का इस्तेमाल कर अंतरिक्ष उद्योग का पूरा फायदा उठाना चाहती हैं.
देश भर में अंतरिक्ष पार्क बनाने से इस क्षेत्र में काम रही प्राइवेट सेक्टर की कंपनियों का खासा फायदा हो रहा है. वो इस क्षेत्र में नित नए प्रयोग कर रही है. खास तौर पर विनिर्माण की ऐसी कंपनियां जो स्पेस वैल्यू चेन (Space Value Chain) में काम कर रही हैं स्पेस पार्क इनके लिए प्रोत्साहन है. ये महत्वपूर्ण स्पेस वैल्यू चेन पृथ्वी और भू-तुल्यकालिक कक्षा के बीच किसी भी व्यावसायिक अंतरिक्ष से जुड़ा कारोबार है.
ये पृथ्वी की निचली कक्षाओं और छोटे उपग्रहों पर फोकस करता है. इसमें चंद्रमा और पृथ्वी के नजदीक छोटे तारों (Asteroids) पर किए जाने लंबे कमर्शियल ऑपरेशन भी शामिल हैं. यह अंतरिक्ष के क्षेत्र में काम कर रहे वैश्विक स्टार्ट-अप को आकर्षित करने और भारत में अंतरिक्ष तकनीक कंपनियों को पनपने में मदद करने के लिए अहम है.
कई कंपनियां भारत में नए लॉन्च साधनों को विकसित करने के लिए अत्याधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल कर रही हैं. इसके लिए एलईओ, एमईओ और जीईओ उपग्रहों और कक्षा प्रबंधन साधनों (Orbit Management Solutions) के प्रक्षेपण के लिए विशेषज्ञता हासिल की गई है. गौरतलब है कि भारत में सैटेलाइट लॉन्च सेगमेंट तेजी से स्टार्ट-अप्स और छोटे और मध्यम कारोबार (एसएमई) के लिए फोकस का अहम क्षेत्र बनता जा रहा है.
इसका मकसद इनोवेशन एजेंडा चलाना है जिससे कि राजस्व लाने के नए मौकों का बेहतरीन इस्तेमाल किया जा सके. यह देखा गया है कि वर्तमान में भारत ने साल 2021 में अंतरिक्ष कारोबार के क्षेत्र में 68 मिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुंचने वाले सेगमेंट में 100 से अधिक स्पेस टेक स्टार्ट अप में निवेश करने का दावा किया है.