भटकते हुए पितरों को गति देने वाले दिन को इंदिरा एकादशी (Indira Ekadashi) कहते हैं, यह आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में यानी पितृ पक्ष (Pitru Paksha) की एकादशी को आती है. इंदिरा एकादशी के दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु का पूजन शालिग्राम के रूप में करने से पितरों को स्वर्ग की प्राप्ति होती है. व्रत के समापन पर व्रत का पुण्य अपने पितरों को अर्पित कर देना चाहिए. कहते हैं जिन पितरों को किन्हीं कारणों से यमराज का दंड भोगना पड़ता है, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है और वह यमलोक की यात्रा पूरी कर स्वर्ग को प्रस्थान करते हैं.कहते हैं कि एक बार धर्मराज युधिष्ठिर को भगवान श्री कृष्ण ने इंदिरा एकादशी के बारे में विस्तार से बताया था. उन्होंने कहा कि वैसे तो सभी एकादशी का महत्व है किंतु पितरों की दृष्टि से आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी का विशेष महत्व है. यह एकादशी पितरों को अधोगति से मुक्त देने वाली तथा सभी पापों को नष्ट करने वाली है.
इस प्रकार से है इंदिरा एकादशी व्रत की कथा
उनकी बताई कथा के अनुसार महिष्मति पुरी में इंद्रसेन नाम के राजा थे. राजा ने एक दिन सपने में देखा कि उनके पिता यमलोक में घोर यातना झेल रहे हैं. स्वप्न में इस बात को देख कर राजा इंद्रसेन बहुत दुखी हुए और उन्होंने देवर्षि नारद को बुलाकर उनसे सपने की बात बताई और पिता को इससे छुटकारा दिलाने का उपाय पूछा तो नारद मुनि ने उन्हें इंदिरा एकादशी का व्रत पूजा करने का सुझाव दिया. उन्होंने बताया कि पितरों को गति देने के लिए तुम्हें आश्विन मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत पूजन करना चाहिए. राजा ने नारद मुनि के बताए अनुसार विधि-विधान से एकादशी का व्रत कर भगवान विष्णु की पूजा की. इस व्रत और पूजन के प्रभाव से राजा इंद्रसेन के पिता को सद्गति प्राप्त हुई और वह स्वर्ग लोक चले गए. राजा की देखा-देखी प्रजा जनों ने भी अपने पितरों को गति देने के लिए इस व्रत को किया. मान्यता है कि इस व्रत को करने से पितरों को पापों से मुक्ति मिलती है और वह यमलोक की यात्रा समाप्त कर सीधे वैकुंठ पहुंचते हैं. तभी से श्राद्ध पक्ष में इंदिरा एकादशी का व्रत और पूजन किया जाता है. इस बार एकादशी 21 सितंबर 2022 को पड़ रही है.