सुप्रीम कोर्ट ने गर्भपात कानून पर अहम फैसला दिया है। अदालत ने कहा कि किसी महिला को 20 हफ्ते से ज्यादा के गर्भ को गिराने से मना इस आधार पर नहीं किया जा सकता कि वह अविवाहित है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने कहा कि ऐसा करना संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हर महिला को सुरक्षित और वैध गर्भपात का हक है, चाहे उसकी वैवाहिक स्थिति कुछ भी हो। अदालत ने मेडिकल टर्मिनेशनल ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) ऐक्ट के प्रावधानों की व्याख्या करते हुए यह फैसला दिया। MTP ऐक्ट के अनुसार- केवल बलात्कार पीड़िताओं, नाबालिगों, महिलाएं जिनकी वैवाहिक स्थिति गर्भावस्था के दौरान बदल गई हो, मानसिक रूप से बीमार महिलाओं या फिर फीटल मॉलफॉर्मेशन वाली महिलाओं को ही 24 हफ्ते तक का गर्भ गिराने की अनुमति है। कानून के हिसाब से रजामंदी से बने संबंधों से ठहरे गर्भ को केवल 20 हफ्तों तक ही गिराया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानून वैवाहिक स्थिति के छिछले आधार पर ऐसे 'कृत्रिम वर्गीकरण' नहीं कर सकता। अदालत ने कहा कि सरकार यह सुनिश्चित करे कि सभी को प्रजनन और सुरक्षित सेक्स की जानकारी हो ताकि अनचाहे गर्भ न ठहरें। बेंच ने कहा कि प्रजनन में स्वायत्तता का शारीरिक स्वायत्तता से बेहद करीबी रिश्ता है। ताजा मामला जुलाई के एक आदेश से निकला है जिसमें शीर्ष अदालत ने एक अविवाहित महिला को 24 हफ्ते के गर्भ को गिराने की अनुमति दे दी थी। वह गर्भ सहमति से बने संबंधों के चलते ठहरा था।
मामला क्या है?
याचिकाकर्ता मणिपुर की रहने वाली हैं और दिल्ली में रहती हैं। गर्भावस्था का पता चलने पर उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट का रुख किया था। हाई कोर्ट ने कानून का हवाला देते हुए 20 हफ्तों से ज्यादा के गर्भ को गिराने की इजाजत से इनकार कर दिया था। हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि कानून अविवाहित महिलाओं को मेडिकल प्रक्रिया के जरिए गर्भपात के लिए समय देता है। विधायिका ने आपसी सहमति से संबंध को किसी मकसद से ही उन मामलों की श्रेणी से बाहर रखा है, जहां 20 हफ्तों से 24 हफ्तों के बीच गर्भपात की इजाजत है। इसके बाद महिला ने सुप्रीम कोर्ट मे अपील दाखिल की। 21 जुलाई को SC ने दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला पलट दिया था। उस SC बेंच को भी जस्टिस चंद्रचूड़ लीड कर रहे थे।
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