गुजरात के वो पूर्व विधायक जिनके पास है BPL कार्ड

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गुजरात के वो पूर्व विधायक जिनके पास है BPL कार्ड

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लोगों के मन में एक विधायक की छवि अक्सर ऐसी बनती है कि वो गाड़ी से आते होंगे और अच्छी सैलरी पाते होंगे. आपने गरीब विधायक के बारे में बहुत कम सुना होगा. गुजरात में कुछ ऐसे पूर्व विधायक हैं जो घोर गरीबी में जी रहे हैं. टीओआई से मिली जानकारी के अनुसार उत्तरी गुजरात के साबरकांठा जिले के खेड़ब्रह्मा निर्वाचन क्षेत्र के पूर्व विधायक 85 वर्षीय जेठाभाई राठौड़ के पास बीपीएल (गरीबी रेखा से नीचे) कार्ड है. एक अन्य पूर्व विधायक 91 वर्षीय वीरसिंह मोहनिया कच्चे घर में रहते हैं और यहां तक ​​कि अपने परिवार का पेट पालने के लिए खेतों में मजदूरी भी करते हैं.

कौन हैं राठौड़?

राठौड़ ने 1967 का विधानसभा चुनाव स्वतंत्र पार्टी के उम्मीदवार के रूप में जीता था, जिसने चुनाव में 66 सीटें हासिल की थीं. राठौड़ अभी भी साबरकांठा के पोशिना तालुका में अपने पैतृक गांव तेबडा में रहते हैं. गांव की आबादी करीब चार हजार है. राठौड़ ने कहा, “मैंने अपने अभियान के लिए अपने दोस्तों और पार्टी के सदस्यों द्वारा प्रदान किए गए लगभग 30,000 रुपये खर्च किए थे. मैंने साइकिल पर प्रचार किया था”.

विधायक बनने के बाद मिला था ये तोहफा

जब वह विधायक के रूप में चुने गए, तो राठौड़ को सीसी देसाई (तत्कालीन जिला पंचायत अध्यक्ष थे) ने कुर्ता-पायजामा के आठ जोड़े उपहार में दिए थे. पूर्व विधायक ने कहा, "समय काफी बदल गया है. 1967 में चुनाव प्रचार के लिए कोई बड़ा नेता मेरे निर्वाचन क्षेत्र में नहीं आया. हम उन लोगों के लिए भुना हुआ चना लाते थे जो हमारी चुनावी रैलियों में शामिल होते थे.” इन दिनों प्रचार पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा, "आजकल, अभियान हाईटेक हो गए हैं और उम्मीदवार भारी मात्रा में पैसा खर्च करते हैं. उन दिनों, हमारे पास एकमात्र एजेंडा था या हमने जो वादा किया था वह जल संकट को हल करने का प्रयास करना था.” विधायक चुने जाने से पहले, राठौड़ ने 1967 में तालुका पंचायत चुनाव लड़ा था लेकिन 195 मतों से हार गए थे.

स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे वीरसिंह मोहनिया

उम्र से संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे 91 वर्षीय वीरसिंह मोहनिया का अब चलना-फिरना मुश्किल हो गया है. पूर्व विधायक दाहोद आदिवासी बहुल जिले के खिरखाई गांव में कच्चे मकान में रहते हैं और उन्हें कोई पेंशन नहीं मिलती है. उनके पोते महेंद्र मोहनिया ने अफसोस जताते हुए कहा, “जो गांधीनगर का प्लॉट उन्हें दिया गया था, उसे सरकार ने छीन लिया था. हमारी आर्थिक स्थिति दयनीय है. मेरे दादाजी ने सिर्फ लोगों की सेवा की है."



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