Maa Chamunda Temple: जहां मां चामुंडा ने चील बनकर की थी जोधपुर के लोगों की रक्षा

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Maa Chamunda Temple: जहां मां चामुंडा ने चील बनकर की थी जोधपुर के लोगों की रक्षा

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Mehrangarh Fort: जोधपुर के मेहरानगढ़ फोर्ट में स्थित मां चामुंडा मंदिर में हजारों की संख्या में श्रदालु दर्शन के लिए पहुंचते है. जानिए इस मंदिर का क्या है इतिहास

Maa Chamunda Temple: जोधपुर (Jodhpur) के मेहरानगढ़ दुर्ग (Mehrangarh Fort) में मां चामुंडा देवी का प्राचीन विशालकाय मंदिर है. मेहरानगढ़ की तलहटी में मां चामुंडा की प्रतिमा को स्थापित किए किया गया हैं जोधपुर की स्थापना के साथ ही मेहरानगढ़ की पहाड़ी पर जोधपुर के किले पर इस मंदिर को स्थापित किया गया था. मां चामुंडा देवी को अब से करीब 561 साल पहले मंडोर के परिहारों की कुल देवी के रूप में पूजा जाता था. देश-विदेश के लोगों की धार्मिक आस्था इस मंदिर से जुड़ी है. श्रद्धालुओं का ये मानना है कि मां के दरबार में जो मांगोगे वो मिलेगा.

मां चामुंडा के मुख्य मंदिर का विधिवत निर्माण महाराजा अजीतसिंह ने करवाया था. मारवाड़ के राठौड़ वंशज चील को मां दुर्गा का स्वरूप मानते हैं. राव जोधा को माता ने आशीर्वाद में कहा था कि जब तक मेहरानगढ़ दुर्ग पर चीलें मंडराती रहेंगी तब तक दुर्ग पर कोई विपत्ति नहीं आएगी.


मेहरानगढ़ दुर्ग में स्थित मंदिर में चामुंडा की प्रतिमा 561 साल पहले जोधपुर के संस्थापक राव जोधा ने मंडोर से लाकर स्थापित की थी.जिसके बाद परिहारों की कुलदेवी चामुंडा को राव जोधा ने भी अपनी इष्टदेवी स्वीकार किया था. इसके साथ ही जोधपुरवासी मां चामुंडा को जोधपुर की रक्षक मानते है.


मां चामुंडा माता के प्रति अटूट आस्था का कारण ये भी है कि साल 1965 और 1971 में भारत-पाक युद्ध के दौरान जोधपुर पर गिरे बम को मां चामुंडा ने अपने अंचल का कवच पहना दिया था.


बताया जाता है कि किले में 9 अगस्त 1857 को गोपाल पोल के पास बारूद के ढेर पर बिजली गिरी थी. जिससे मां चामुंडा मंदिर कण-कण होकर उड़ गया लेकिन मूर्ति अडिग रही.


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