ध्रुव परमार /सवाददाता,लालटेन (lantern) प्रकाश का सुवाह्य स्रोत है जिसे हाथ से उठाकर एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाया जा सकता है। प्रकाश स्रोत के अतिरिक्त इनका उपयोग संकेत देने (सिगनलिंग) के लिये भी किया जा सकता है। पुराने दिनों में यह टार्च की भांति भी प्रयोग किया जाता होगा। कुछ लालतेनों का प्रयोग सजावट के लिये भी किया जाता है। लालटेन शब्द अंग्रेज़ी के लॅन्टर्न शब्द का अपभ्रंश है। जिस प्रकार अनेक खोज युद्ध में सेना की आवश्यकता के लिए हुई उसी तरह लालटेन भी उन खोजों में से एक है। इसलिए मुख्य रूप से लालटेन का रंग हरा होता है। केरोसिन ऑयल जिसे मिट्टी का तेल या दक्षिण भारत में घासलेट भी कहते है, ही इसके आविष्कार का कारण बना। सेना को रात में रौशनी के लिए एक ऐसे उपकरण की आवश्यकता थी जिसकी आग तेज हवा और बारिश में भी ना बुझे। लालाटेन भारत में घर-घर में पाये जाने वाला एक अनिवार्य प्रकाश उपकरण बन गया जो आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में पाया जाता है। लालटेन पर कहावतें मशहुर है-
*इसकी तो लालटेन बुझ गयी
*आँखें है या लालटेन
सजावटी लालटेन (कंदील) भी अनेक रूपों में मौजूद हैं। कुछ इमारतों से लटकाने के लिए है, काग़ज़ लालटेन दुनिया भर में चलन में है विशेषकर जापान और चीन में इनका उपयोग बहुत होता है। लालटेन को परिवहन के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। रेलगाड़ी के सिग्नल देने में इसकी मुख्य भूमिका है। केरोसिन लालटेन के कुछ ख़तरे भी हैं। ज्वलनशील ईंधन विषाक्त गैसों का उत्सर्जन लालटेन का मुख्य दुर्गुण है। कार्बन मोनोऑक्साइड विषाक्तता जीवन और पर्यावरण के लिए अत्यंत हानिकारक है। कुछ लालटेन बैटरी संचालित होती हैं। वे केरोसिन लालटेन की तुलना में आसानी से उपयोग में आने वाली और अपेक्षाकृत अधिक टिकाऊ हैं।
अग्रेज शाशन से भी पहले से लालटेन हरघर की प्रमुख उपयोगी चीज मानी जाती थी,यह कभी हर एक घर में रोशनी का जरिया थी, अब इसका शीशा भी ढूंढे न मिलेगा
लालटेन महारानी संग्राहलयों से लेकर प्रदर्शनियों तक में आमजन की जानकारी बढ़ाने और दर्शनार्थ प्रदर्शित की जाने लगेगी। जिसे दिखाकर नई पीढ़ी को अवगत कराया जाएगा कि कभी यह चीज भारत के गांव-कस्बों से लेकर शहरों तक में प्रकाश पुंज अर्थात रात में रोशनी प्रदान करने के काम आती थी।
2022 चल रहा हे, जबकि आने वाले कुछ दशकों बाद पैदा होने वाली पीढ़ी के लिए लालटेन का नाम सुनना ऐसा लगेगा कि यह किसी नए ग्रह के प्राणी का नाम तो नहीं है या फिर कहीं सुकरात और कबीर के जमाने में पैदा हुए किसी दार्शनिक का नाम तो नहीं था। ऐसा हम यूं ही नहीं कह रह हैं।जो आज 30 साल के हे,वो भी आँखे बंध करेंगे तो उन्हें अपने आसपास बचपन की यादो में यह नजर आएगी। खेर आज के इस आर्टिकल में इसी लालटेन की बात करेंगए।
यह बात भी हे की आज लालटेन रखने वाले उगंलियों पर गिनने को मिलेंगे। गांव, शहरों से लेकर महानगरों तक में आज कितनी नौजवान पीढ़ी ऐसी है जोकि लालटेन से परचित होगी। मेरा तो मानना है कि आने वाले कुछ ही वर्षों में लालटेन एक दुर्लभ विलक्षण वस्तु का दर्जा हासिल जरूर कर लेगी। जिसे देश की हैरीटेज वस्तुओं की सूची में भी शामिल कर लिया जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
इतिहास के पन्नो पर ऐसी घरेलु कई चीजे दुर्लभ बनती जा रही हे,लालटेन महारानी संग्राहलयों से लेकर प्रदर्शनियों तक में आमजन की जानकारी बढ़ाने और दर्शनार्थ प्रदर्शित की जाने लगेगी। जिसे दिखाकर नई पीढ़ी को अवगत कराया जाएगा कि कभी यह चीज भारत के गांव-कस्बों से लेकर शहरों तक में प्रकाश पुंज अर्थात रात में रोशनी प्रदान करने के काम आती थी।
आज देश हाईटेक युग की पहचान बन रहा हे, अब यह 5G,की बात हो रही हे,लेकिन किसी जमाने में लालटेन बड़े काम की चीज रही है। यह भारत की आजादी की लड़ाई की साक्षी रही है तो वहीं महापुरूषों से लेकर राजनेताओं तक को दिशा दे चुकी है। न जाने कितने कवियों, लेखकों ने इसकी रोशनी में ही साहित्य सृजन की नई बुलंदियों को छुआ है। वहीं कितने विद्यार्थियों और युवाओं ने इसकी ज्योति में शिक्षा ग्रहण करके देश के उच्च पदों को सुशोभित किया है।
युग बदलते रहते हे,गीता ज्ञान भी यही कहता हे,आज बेचारी वही लालटेन अपने वजूद के लिए लड़ाई लड़ रही है। हम महानगरों में रहने वाले अपने शहरों को मेट्रो शहर का दर्जा हासिल हो जाने पर जरूर गर्व महसूस करते हैं। लेकिन दर्शको आपको बता दें दिल्ली, मुम्बई जैसे बड़े शहरों में इलेक्ट्रिक के कई नवनीतम उपकरन घर की लालटेन की पहचान छुपाकर अपनी पहचान बना बैठे हे, लेकिन आज महानगरों की तो छोड़िए गांव-कस्बों में भी लालटेन की बेकदरी का हाल बहुत बुरा है।इस पर कई शायरी और गीत भी मशहूर हे,
आँखें कभी चौंधियाती हैं,
बीते युग की तब-तब वो
लालटेन याद आती है,
वो शाम आते ही अम्बर में
सूरज का ढ़ल जाना,
वो गोधुली पर आँगन में
लालटेन का जल जाना,
लालटेन की लौ में पढ़कर
नाम कईं हुए उज्जवल
आज की चकाचौंध में भी
हो पाते न उतने सफल,
सुरज ढ़लते ही पशु-पक्षी
लौट के वापस आते थे
बच्चे-बड़े-बूढ़े भी सब
दिन ढले घर आ जाते थे,
हर घर कि दिवार से ये
सटी रहा करती थी
कहीं आलों में कहीं खूँटी
पर टँगी रहा करती थी,
जलती काँच की सदा ओट
में,थे वार न इसके तीखे
कहावत है"अँधेरे का सम्मान
कोई लालटेन से सीखे,"
हर क्षेत्र में लालटेन ने
कितने ही,इतिहास रचे
कितनी ही इसने बाँटी रोशनी
कितने ही इससे अँधेरे बचे,
लालटेन का अस्तित्व खो
चुका,बीते युग के तैखाने में
क्या समझेगी आज की
पीढ़ी इसे इस जमाने में,
जो नहीं है लालटेन फिर भी
हम अँधकार मिटा सकते हैं
आशाओं की लौ से हम मन
की लालटेन जला सकते हैं,
मन में की लालटेन ही हमारे
भीतर से तम मिटा सकती है
चकाचौंध से भरी दुनिया में
बेहतर राह दिखा सकती है।
राष्ट्रीय जनता दल (राजद) :
राजद का चुनाव चिह्न 'लालटेन' है। लालटेन आत्मज्ञान का, साक्षरता की ओर प्रगति का और प्रकाश का प्रतीक है। उक्त चुनाव चिह्न को अंधकार के उन्मूलन और प्रकाश व प्रेम का प्रचार करने के लिए उपयुक्त माना जाता है।प्रचार स्लोगन में लालटेन की गरिमा दिखती हे,
चुनाव चिन्ह हे लालटेन, जब चुनाव आते हे तो मतदारो को लुभाने कई शायरीमें लालटेन का सन्मान से नाम लिया जाता हे..
गांव ने इस बार ठान लिया है
चुनाव चिन्ह हरिकेन लैम्प (लालटेन) को विकास का जरिया मान लिया है ।
घर घर से यह उठ रही है आवाज़
हरिकेन लैम्प (लालटेन) पर वोट देकर
सुनिश्चित करो विकास का आगाज़ ।
चुनाव चिन्ह हरिकेन लैम्प (लालटेन) का साथ दीजिए
गांव को नया नेतृत्व नया विकास दीजिए ।
सदियों तक हम भारतवासियों को अपनी रोशनी से जगमग करने वाली लालटेन आज अपने ही देश में अपनों के बीच ही बेगानी हो गई है।