गुजरात विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए अहम साबित होने जा रहा है. लेकिन इस बार देश के सबसे पुराने राजनीतिक दल के लिए हालात उतने पक्ष में नहीं है जितने कि साल 2017 के विधानसभा चुनाव में थे.
इस बार के चुनाव में पाटीदार आंदोलन का मुद्दा, बीजेपी में मुख्यमंत्री पद के लिए उहापोह के हालात, हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर जैसे युवा नेताओं की हुंकार और सबसे बड़ी बात कांगेस के सबसे बड़े स्टार प्रचारक राहुल गांधी पूरी तरह से अभी तक गायब हैं.
इतना ही नहीं पिछले विधानसभा चुनाव में बीटीपी जो कि आदिवासियों के बीच सक्रिय है उसका भी साथ मिला था. लेकिन इस बार उसके साथ अभी तक समझौता नहीं हो पाया है. पिछली बार के विधानसभा चुनाव में दो ध्रुवीय लड़ाई थी जिसमें बीजेपी और कांग्रेस के मुकाबला था.
लेकिन इस बार आम आदमी पार्टी गुजरात में पूरे जोर-शोर से चुनाव के मैदान में हैं. अरविंद केजरीवाल बीते एक साल से राज्य का दौरा कर रहे हैं और वह बीजेपी को उन मुद्दों पर चुनौती दे रहे हैं जो उसका कोर एजेंडा है. केजरीवाल ने भारतीय करेंसी पर लक्ष्मी-गणेश की तस्वीर छापने की मांग कर दी है. ये एक तरह का 'हिंदुत्ववादी' हथियार है जिसका इस्तेमाल बीजेपी अभी तक करती आई है.
लेकिन कांग्रेस अभी तक इस चुनाव में बिना 'सेनापति' की फौज वाली हालात में मैदान में हैं. राहुल गांधी साल 2024 की भारत जोड़ो यात्रा में व्यस्त हैं. अभी तक उनका गुजरात जाने का कार्यक्रम भी सामने नहीं आया है.
राहुल गांधी ने गुजरात चुनाव को लेकर कांग्रेस का घोषणापत्र जरूर ट्वीट किया है. उन्होंने घोषणापत्र की बातों को ट्विटर पर लिखा, 'युवाओं को 10 लाख नौकरियां, किसानों का 3 लाख तक क़र्ज़ा माफ़ - हम, गुजरात के लोगों से किए सारे #CongressNa8Vachan निभाएंगे. भाजपा के ‘डबल इंजन’ के धोखे से बचाएंगे, प्रदेश में परिवर्तन का उत्सव मनाएंगे.'
कांग्रेस के नेता आम आदमी पार्टी के गुजरात में सक्रिय होने से किसी भी तरह के खतरे को इनकार करते हैं. अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में बुजुर्ग कांग्रेस नेता बालूभाई पटेल कहते हैं, 'बड़े नेता चिमनभाई और शंकर सिंह वाघेला जैसे लोग भी तीसरे मोर्चा को नहीं बना पाए, तो उनके आगे 'आप' क्या है?
कांग्रेस साल 1995 से गुजरात की सत्ता से बाहर है और 2014 के लोकसभा चुनाव से एक भी सीट नहीं जीत पाई है. लेकिन पार्टी ने इस बार पिछली बार की तरह 'सॉफ्ट हिंदुत्व' जैसी भारी-भरकम और चमकदमक वाली रणनीति बनाए के बजाए माइक्रो लेवल पर बूथ मैनेजमेंट का प्लान बनाया है.
कांग्रेस को भी पता है कि आम आदमी पार्टी गुजरात में कितना भी शोर मचा ले बूथ लेवल मैनजमेंट और संगठन के मामले में ये पार्टी अभी काफी पीछे है. जमीन पर भी कांग्रेस के जितने कार्यकर्ता सक्रिय हैं आम आदमी पार्टी इस तरह का नेटवर्क नहीं बना पाई है.
कांग्रेस ने युवा नेताओं को नेटवर्क बनाने की जिम्मेदारी सौंपी है. इन लोगों को एक पार्टी की ओर से डाटाबेस दिया गया है. ये टीम फोन करके पार्टी के लिए काम करने के लिए लोगों को तैयार करते हैं जो इस काम के लिए राजी होते हैं उनसे 5 और को जोड़ने के लिए कहा जाता है.
इसके साथ ही इसी साल अगस्त के महीने में कांग्रेस की ओर से चुनावी रथ भी रवाना किए गए हैं. इन रथों के जरिए आम जनता तक इस बात का संदेश दिया जा रहा है कि किस तरह से आजादी के बाद से कांग्रेस ने देश की विकास में योगदान दिया है. इसके अलावा कांग्रेस ने राज्य में परिवर्तन संकल्प यात्रा भी शुरू किया है जिसमें नेता और कार्यकर्ता बढ़चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं.
कांग्रेस की इस रणनीति पर पीएम मोदी ने भी बीजेपी कार्यकर्ताओं को अगाह किया है. उन्होंने वल्लभ विद्यानगर में आयोजित एक रैली में कहा, ' वे (कांग्रेस के नेता) खबरों में नहीं दिख रहे हैं, न ही प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे हैं, न भाषण दे रहे हैं. इसलिए भ्रमित न हों. यह (कांग्रेस) बोल नहीं रही है, लेकिन यह गांवों में पहुंच रही है, बैठक कर रही है.'
पीएम मोदी ने कहा कि बीजेपी कार्यकर्ताओं को सतर्क रहने और इसका मुकाबला करने की जरूरत है. इस तथ्य के आधार पर उसका आकलन नहीं करें कि कांग्रेस ने जन सभाएं, संवाददाता सम्मेलन नहीं किए हैं, या बयान नहीं दिए हैं. पीएम मोदी ने बीजेपी कार्यकर्ताओं को कांग्रेस के 'साइलेंट प्रचार' को लेकर चेताया है.
लेकिन ऊपर की सभी बातों से अलग एक सच्चाई भी कांग्रेस के सामने है. वास्तव में गुजरात विधानसभा 2022 का चुनाव कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती है. साल 1985 के बाद से पिछले विधानसभा चुनाव में यह पहला मौका था जब कांग्रेस को इतनी सीटें (77) मिली हों. 1985 में कांग्रेस को माधव सिंह सोलंकी की अगुवाई में 82 फीसदी वोटों के साथ 149 सीटें मिली थीं. इस चुनाव में KHAM (क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी और मुस्लिम) समीकरण ने कांग्रेस के पक्ष में काम किया था.
साल 2002 के बाद से बीजेपी में नरेंद्र मोदी के उदय के बाद से कांग्रेस कमजोर होती चली गई. लेकिन साल 2017 के चुनाव में कांग्रेस पाटीदार आंदोलन के चलते दोबारा मजबूत हुई थी. बीजेपी को इस चुनाव में 99 सीटें मिली थीं यानी कांग्रेस से 22 सीटें ज्यादा. जबकि 36 सीटें ऐसी थीं जिसमें हार-जीत का अंतर 5 हजार से भी कम था. इनमें से 18 सीटें कांग्रेस के खाते में आई थीं.
दिलचस्प बात ये है कि साल 2001 से लेकर 2017 तक सिर्फ विधानसभा चुनाव 2002 को छोड़ दिया जाए तो बीजेपी का वोट शेयर और विधानसभा सीटें लगातार घटीं हैं. 2017 में बीजेपी 99 सीटों पर अटक गई थीं.
वहीं 1990 से लेकर 2017 तक कांग्रेस की सीटें लगातार बढ़ती हैं. हालांकि इसमें साल 2002 का विधानसभा चुनाव शामिल नहीं है. साल 1990 में 33, साल 1995 में 45, साल 1998 में 53, साल 2007 में 59, साल 2012 में 61, साल 2017 में 77. वहीं साल 2002 में भी 51 सीटें शामिल हैं.
साल 2017 के चुनाव में कांग्रेस के पक्ष में कई समीकरण काम कर रहे थे. जिसमें पाटीदार आंदोलन, ओबीसी आंदोलन, अशोक गहलोत के रूप में अनुभवी रणनीतिकार, राहुल गांधी का 40 दिन तक गुजरात में कैंप जिसमें 27 मंदिरों का दौरा शामिल है.
लेकिन इस बार हालात बिलुकल अलग हैं. अशोक गहलोत गुजरात के इनचार्ज हैं लेकिन वो राजस्थान में अपनी ही कुर्सी बचाने में व्यस्त हैं, सरकार के खिलाफ किसी भी तरह का जातिगत आंदोलन नहीं है, राहुल गांधी अभी तक गुजरात नहीं पहुंचे हैं. इसके साथ आम आदमी पार्टी और एआईएमआईएम भी राज्य में सक्रिय हो चुकी हैं.
दूसरी ओर बीजेपी के स्टार प्रचारक पीएम मोदी सहित बीजेपी की पूरी फौज गुजरात में कई महीने पहले से ही उतर चुकी है. देखने वाली बात ये होगी कांग्रेस के लिए सीटें बढ़ाने के अपने ट्रेंड को कैसे और कहां तक ले जाती है.