महाराष्ट्र के पूर्व सीएम अशोक चव्हाण क्या कांग्रेस छोड़ने वाले हैं? राहुल गांधी की भारत जोड़ा यात्रा के बीच महाराष्ट्र में ये कयास लग रहे हैं। इसकी वजह अशोक चव्हाण का भाजपा और एकनाथ शिंदे गुट के प्रति नरम रवैया है। इसके अलावा एकनाथ शिंदे सरकार की ओर से उन्हें मिले रिटर्न गिफ्ट ने भी दावों को तेजी दी है। एक तरफ उद्धव ठाकरे सरकार के दौर की परियोजनाओं को महाराष्ट्र में रद्द किया जा रहा है तो वहीं अशोक चव्हाण के निर्वाचन क्षेत्र में एक अहम योजना को मंजूरी दी गई है। चव्हाण के भोकर विधानसभा क्षेत्र में वाटर ग्रिड योजना को मंजूरी मिल गई है। शिंदे सरकार ने भोकर के 183 गांवों में पानी पहुंचाने की योजना को मंजूरी दे दी है। यह 728 करोड़ रुपये की योजना है और इसके लिए 10 दिन पहले टेंडर निकाला गया है।
इसे लेकर महाराष्ट्र के सियासी गलियारों में इस बात को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं कि आखिर एकनाथ शिंदे सरकार उन पर इतनी मेहरबान क्यों है। वह भी ऐसे वक्त में जब उसकी ओर से कई योजनाओं पर ब्रेक लगाया गया है। कहा जा रहा है कि अशोक चव्हाण कांग्रेस हाईकमान से नाखुश हैं और वह पार्टी छोड़ने पर विचार कर रहे हैं। भाजपा नेताओं ने भी बीते कुछ दिनों में इस तरह के बयान दिए हैं, जिससे यह अनुमान लगाया जा रहा है कि चव्हाण की भगवा दल में एंट्री हो सकती है। इसके पीछे जून में हुए विधान परिषद चुनाव को भी एक वजह माना जा रहा है।
जून में हुए विधान परिषद चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार चंद्रकांत हंडोरे को हार का सामना करना पड़ा था। इस चुनाव में कांग्रेस विधायकों की राय बंटी हुई थी। दिलचस्प बात यह है कि हंडोरे की जीत पक्की मानी जा रही थी। उन्हें कांग्रेस विधायकों के पहली वरीयता के वोट मिलने की उम्मीद थी। लेकिन हुआ ठीक इसके विपरीत। हंडोरे को अपेक्षित वोट नहीं मिले। हालांकि कांग्रेस के दूसरे उम्मीदवार भाई जगताप जीत गए थे। उस दौरान कांग्रेस विधायकों की क्रॉस वोटिंग की काफी चर्चा हुई थी और पार्टी को इस मामले में किरकिरी झेलनी पड़ी थी।
बता दें कि जून में राज्यसभा और विधान परिषद के चुनावों में महा विकास अघाड़ी सरकार को करारा झटका लगा था। दोनों चुनावों में भाजपा ने अपर्याप्त वोटों के बावजूद अधिक उम्मीदवारों को मैदान में उतारा और अपने कैंडिडेट्स को जीत दिलाने में सफल रही। इसकी वजग कांग्रेस के विधायकों की क्रॉस वोटिंग थी। इन दो झटकों के बाद ही अघाड़ी सरकार गिर गई थी। इसके बाद एकनाथ शिंदे ने भाजपा की मदद से सरकार बनाई। सरकार ने विश्वास मत हासिल किया। इसके अलावा जब विश्वास प्रस्ताव पर मतदान हो रहा था तब कांग्रेस के 10 विधायक सदन से गायब थे। वे देर से पहुंचे थे, जिनमें अशोक चव्हाण भी शामिल थे।
गुजरात विधानसभा चुनाव को लेकर सी-वोटर के ताजा सर्वे के नतीजे यदि सच साबित हुए तो यहां एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने जा रही है। सर्वे में यह भी कहा गया है कि 27 साल से सरकार चला रही भगवा पार्टी को राज्य में अब तक की सबसे बड़ी जीत मिल सकती है। एक साल पहले मुख्यमंत्री समेत सरकार में बड़े फेरबदल करने वाली पार्टी 140 से अधिक सीटें जीत सकती है। 5 साल पहले 99 सीटें जीतने वाली कांग्रेस इस बार 36-44 सीटों से संतोष करना पड़ सकता है।
मोदी भले ही 8 साल से दिल्ली में बैठकर देश की सरकार चला रहे हैं, लेकिन गुजरात की राजनीति में अब भी वह 'केंद्र' में बने हुए हैं। सर्वे के नतीजे यह भी संकेत देते हैं कि मुसलमानों के वोट में इस बार काफी बंटवारा होने वाला है और मोदी का मैजिक मुसलमानों पर भी चलने वाला है। 'अल्पसंख्यक मित्र' अभियान चला रही भाजपा को 23 फीसदी मुस्लिम वोट मिलने की संभावना जताई गई है। कांग्रेस पार्टी को 45 फीसदी और 'आप' को 30 फीसदी मुस्लिम वोट मिलने की भविष्यवाणी की गई है। 2 फीसदी मुस्लिम वोट अन्य के खाते में जा सकते हैं। यदि सर्वे के नतीजों के अनुरूप गुजरात में मुस्लिम वोटों का इस तरह बंटवारा होता है तो यह ना सिर्फ भाजपा की जीत का एक आधार बनेगा बल्कि राज्य में सियासी समीकरण बदलने का भी बड़ा संकेत होगा।
2002 में भीषण सांप्रदायिक दंगा झेल चुके गुजरात में 2012 से पहले कांग्रेस को 80 फीसदी से अधिक मुस्लिम वोट मिलते थे। लेकिन दंगों के एक दशक बाद तक इसमें बड़ा बदलाव आ गया। राजनीतिक जानकारों की मानें तो जिस तरह गुजरात में आर्थिक विकास हुआ और इसका फायदा हिंदू-मुस्लिम सभी को बिना किसी भेदभाव के हुआ तो बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक वोटर्स भाजपा की ओर झुके। सीएसडीएस के पोस्ट पोल सर्वे के मुताबिक 2012 में भाजपा को 20 फीसदी मुस्लिम वोट मिले थे। 2027 में तो पार्टी को 27 फीसदी मुस्लिम वोट मिलने की बात कही गई थी।
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