राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने गृह सचिव सहित तमिलनाडु सरकार के शीर्ष अधिकारियों को कानूनी नोटिस जारी किया है। दरअसल तिरुवल्लूर पुलिस ने संघ को 2 अक्टूबर को 'रूट मार्च' आयोजित करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया। संघ का कहना है कि इस मामले में मद्रास उच्च न्यायालय पहले ही उसके पक्ष में फैसला दे चुका है। कोर्ट के आदेश के बावजूद 'रूट मार्च' की अनुमति न देने को लेकर RSS ने तमिलनाडु सरकार को नोटिस जारी किया है।
भगवा संगठन ने राज्य के गृह सचिव फणींद्र रेड्डी, डीजीपी सी सिलेंद्र बाबू, स्थानीय एसपी और नगर पुलिस निरीक्षक को कानूनी नोटिस जारी कर पूछा कि अदालत के आदेश की अवहेलना करने पर उनके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई क्यों शुरू नहीं की जानी चाहिए। अपने कानूनी नोटिस में, आरएसएस के वकील बी राबू मनोहर ने कहा कि न्यायमूर्ति जी के इलांथिरैयन ने 22 सितंबर के अपने आदेश में साफ कर दिया था कि इन चार में से किसी को भी 'रूट मार्च' की अनुमति न देने और नई शर्तें लगाने का अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के अधिकारी हाईकोर्ट द्वारा तय की गई शर्तों के अलावा अन्य कोई शर्त नहीं लगा सकते हैं।
हाईकोर्ट के आदेश में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि रूट मार्च निकालना और जनसभाएं करना याचिकाकर्ताओं (RSS) का संवैधानिक अधिकार है। संघ ने अपने नोटिस में कहा, "इसलिए, यह पुलिस पर कर्तव्य है कि वह पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करे, और बिना किसी कार्रवाई के मिशन को सफलतापूर्वक पूरा करने में सक्षम बनाए। निरीक्षक द्वारा पारित अस्वीकृति आदेश (तिरुवल्लुर टाउन पुलिस स्टेशन से जुड़ा हुआ) एक प्रकार से अवैध और अवमाननापूर्ण है, क्योंकि तीनों उच्च न्यायालय के समक्ष पक्षकार हैं और आदेश का कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए कर्तव्यबद्ध हैं। आदेश को ना मानने पर अवमानना माना जाएगा।”मनोहर ने चार अधिकारियों से बिना शर्त अस्वीकृति आदेश वापस लेने और रूट मार्च निकालने व 2 अक्टूबर को एक सार्वजनिक बैठक आयोजित करने की अनुमति देने का आह्वान किया है। किसी भी विफलता के परिणामस्वरूप जानबूझकर अवज्ञा के लिए उच्च न्यायालय के समक्ष अवमानना कार्यवाही शुरू की जाएगी।
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