वैश्विक जीडीपी की 40 फीसद हिस्सेदारी वाले देश अब सप्लाई चेन से लेकर साफ-सुथरे व्यापार के लिए भारत को चीन के विकल्प के रूप में देख रहे हैं। अगले सप्ताह में अमेरिका में इंडो पैसिफिक इकोनामिक फ्रेमवर्क (IPEF) की मिनिस्टीरियल बैठक होने जा रही है, जहां एक ऐसे सप्लाई चेन और भविष्य के आर्थिक फ्रेमवर्क के गठन को लेकर चर्चा होगी जिसमें चीन की भूमिका नगण्य हो। कोरोना काल में सप्लाई चेन में आई दिक्कत और व्यापारिक रूप से चीन के दबदबा वाले रवैये को देखते हुए एक विकल्प तैयार करने के उद्देश्य आईपीईएफ का गठन किया गया।
आर्थिक विशेषज्ञों के मुताबिक अब पूरी दुनिया में मैन्यूफैक्चरिंग और सप्लाई चेन की स्थापना से जुड़ी चर्चा में चीन प्लस वन (चीन के अलावा एक) की बात की जाती है। यानी चीन को पूरी तरह दरकिनार नहीं किया जा सकता है लेकिन विकल्प तैयार करने होंगे और फिर चीनको छोड़कर बात हो सकती है। कुछ इसी उद्देश्य से आईपीईएफ में चीन को शामिल नहीं किया गया है।
वैश्विक व्यापार में आयात व निर्यात दोनों ही रूप में चीन की हिस्सेदारी 12 फीसद से अधिक है, इसलिए चीन पर निर्भरता अभी जारी रहेगी। लेकिन सभी विकसित देश इस निर्भरता को कम करने की अपनी मंशा अब खुले तौर पर जाहिर कर रहे हैं।